Home »Abhivyakti »Hamare Columnists »Others» Bhaskar Editorial By Sumaira Abdulaliहमारे मुश्किल काम ही होते हैं ज्यादा प्रेरकसुमेरा अब्दुल अली | Nov 28, 2016, 07:23 IST मेरा मानना है कि जो चीज आपको मुश्किल लगती है, उसमें कठिनाई आती हैं, उससे आपको ज्यादा प्रेरणा मिलती है। मेरा मानना है कि जो चीज आपको मुश्किल लगती है, उसमें कठिनाई आती हैं, उससे आपको ज्यादा प्रेरणा मिलती है। जैसे अटैक! यदि कोई किसी को किसी काम से रोकने के लिए हमला करता है, तो कई बार उसका परिणाम उल्टा ही दिखाई पड़ता है। इसके विपरीत जिस पर अटैक होता है, उसे यह पता चलता है कि वह जो कर रहा है, उसकी देश को और लोगों को सख्त जरूरत है। मैं अकेले ही काम करती हूं। मुझे न तो कोई फंडिंग मिलती है, न ऑर्गनाजेशन है और न ही बड़ी संख्या में लोग। यदि कोई ध्वनि प्रदूषण या फिर पर्यावरण के क्षेत्र में कुछ करना चाहता है, तो मैं उसे मदद करने को तैयार हूं। मेरे घर के पास एक मस्जिद थी। उसके लाउडस्पीकर को मैंने शिकायत करके बंद करवा दिया। यदि किसी और को अपने घर के पास प्रदूषण रोकने के लिए कुछ करना है, तो उसे खुद पहल करनी होगी। आपको यह जानकर आश्चर्य होगा कि जब मैंने ध्वनि प्रदूषण के खिलाफ आवाज उठानी शुरू की, तो मुझे लगा कि जिनके खिलाफ में यह कर रही हूं, वे मेरे खिलाफ हो जाएंगे। पर हुआ इसके विपरीत! क्योंकि जो लोग मेरे खिलाफ हुए वे मेरे करीबी दोस्त थे। उन्हें लगता था कि वे जहां मुझे कहेंगे मैं वहां पर्यावरण और ध्वनि प्रदूषण की अपनी लड़ाई में नरम पड़ जाऊंगी। किंतु जब मैंने अपने उसूलों से समझौता करने से इनकार किया, तो वे नाराज हो गए। पर यही सब बातें जब मैंने दूसरों से कही तो कोई खास विरोध नहीं हुआ। मेरे प्रयासों से 2003 में ‘साइलेंस जोन’ के बारे में कोर्ट का पहला ऑर्डर आया। इसके मुताबिक जहां ‘साइलेंस जोन’ थे, वहां दस बजे नवरात्रि के लाउडस्पीकर बंद करने थे। मुझे लगा था कि लोग इसका बड़े पैमाने पर विरोध करेंगे पर ऐसा नहीं हुआ बल्कि लोगों ने कोर्ट के ऑर्डर का स्वागत किया। गिरजाघरों ने ‘मिड नाइट मास’ को अपने आप टाइम चैंज कर दस बजे के अंदर बंद करना शुरू किया। मुझे तब सुखद आश्चर्य हुआ जब नवरात्रि के बाद एक बड़े नवरात्रि मंडल के प्रमुख आयोजक ने फोन किया और कहा कि उनकी बेटी काॅलेज में है। वह इस विषय पर एक प्रोजेक्ट करना चाहती है कृपया उसकी मदद करें। इसी तरह एक मस्जिद के ट्रस्टी ने मुझे कॉल किया और कहा कि हम ध्वनि प्रदूषण वाली आपकी बात से सहमत हैं। हमें बताएं कि हम इस दिशा में कैसे काम करें। मेरे काम से पर्यावरण को लेकर आई जागरूकता का सवाल है, तो यह देश मेरा है। मेरी फैमेली का देश की आजादी में योगदान रहा है। स्वतंत्रता सेनानी और अखिल भारतीय कांग्रेस समिति के तीसरे अध्यक्ष बदरुद्दीन तैयबजी मेरे परदादा थे। ख्यात पक्षी विशेषज्ञ सालिम अली मेरे चाचा थे। पक्षी विज्ञानी हुमायं अब्दुल अली मेरे ससुर हैं। चूंकि मेरी फैमली का एक इतिहास रहा है, इसलिए मैं जब कुछ करने की ठान लेती हूं, तो मैं इस बात की चिंता नहीं करती कि कौन साथ रहेगा? कौन छोड़कर चले जाएगा? कौन-सी पार्टी मेरे खिलाफ हो जाएगी। मेरा मानना है कि जब आप किसी को खुश करने के लिए कोई काम करते हैं, तो वह बहुत ही सीमित हो जाता है। इसलिए मैं ‘कर्मयोग’ में विश्वास करती हूं कि मैं जो कुछ कर रही हूं उसके बदले मुझे कुछ भी नहीं मिलना है। मैं मूल रूप से महाराष्ट्र के अलबाग की हूं। मुझे लगता है कि सभी को अपने घर के आस-पास ही बचपन और छात्र जीवन के वक्त कुछ न कुछ ऐसा दिखता जो आगे चलकर उसे प्रेरणा देता है। मेरे घर के पास दरिया, जंगल, पक्षी और पर्यावरण था परंतु जब वहां रेत खनन शुरू हुआ, तो पर्यावरण पर असर पड़ने लगा। इस तरह मैंने 1998 में पर्यावरण के क्षेत्र में काम करना शुरू किया। सबसे पहले मेरे पास कोली समाज के लोग मदद मांगने आए थे। मगर उस वक्त मेरे बच्चे छोटे थे, लिहाजा मैंने काम धीमी गति से शुरू किया। किंतु जब मैं मुंबई रहने आई, तो मैंने ध्वनि प्रदूषण के क्षेत्र में पूरी क्षमता से काम करना शुरू किया। इस बीच मुझ पर 2004 और 2010 में जानलेवा हमले भी हुए, जिससे मेरे इरादों को और बल मिला। पर्यावरण और प्रदूषण के क्षेत्र में काम करना मैंने 1998 में शुरू किया था। मगर आगे चलकर मुझे लगा कि यदि कुछ ठोस करना है, तो एक संस्था का होना बहुत जरूरी है। तो मैंने 2006 में ‘आवाज फाउंडेशन’ रजिस्टर्ड कराया। आवाज फाउंडेशन के सिद्धांत और काम करने का तराका दूसरे एनजीओ से अलग है। हम किसी से फंड नहीं मांगते और न ही में विदेश से कोई चंदा मिलता है। हम अपने वाॅलेंटियर के बल पर ही काम करते हैं। एक बार शिवाजी पार्क में शिवसेना की रैली हो रही थी और मैं आवाज के स्तर को मापने के लिए वहां पहुंची, तो शिवसेना प्रमुख बाल ठाकरे ने अपने भाषण में कहा कि शिवसेना की आवाज शेर की आवाज है। इसे कोई दबा नहीं सकता है। इसके बाद कहा गया कि मैं सिर्फ हिंदुओं के त्योहारों और उनके ही आयोजनों के दौरान ही ध्वनि प्रदूषण मापने पहुंच जाती हूं। मस्जिदों के लाउडस्पीकर की आवाज बंद कराने नहीं जाती। मैंने जवाब में कहा कि इस बारे में जो पीआईएल मैंने अदालत में दाखिल की हुई थी, उसमें मस्जिदों के लाउडस्पीकर की भी बात का जिक्र है। अदालत ने इस संबंध में लोकल बॉडी को कदम उठाने का निर्देश दिया हुआ है। चूंकि मुंबई मनपा में शिवसेना की सत्ता है, इसलिए मस्जिदों के लाऊडस्पीकर बंद कराने का काम शिवसेना को ही करना चाहिए। 2008 में जब पहली बार हमने ‘नो हॉर्न प्लीज’ की मुहिम शुरू की, तो मुंबई पुलिस ने एक कार्यक्रम किया था। इस दौरान मेरी मुलाकात अमिताभ बच्चन से हुई। उन्होंने मेरे काम की प्रशंसा भी की। इसी तरह 2010 में इस ठाणे में आयोजित कार्यक्रम में अभिनेता जावेद जाफरी, सचिन खेडेकर और श्रेयस तलपदे से मुलाकात हुई। उन्होंने बाद में मुझे कुछ मैसेज भी भेजे, जिसका वीडियो हमने बनाया है। पर्यावरण और ध्वनि प्रदूषण क्षेत्र में मेरे कार्यों का बहुत असर पड़ा है। पॉलिसी में बदलाव हुए हैं। 2012 में सेंड मायनिंग पर हमने संयुक्त राष्ट्र में ‘आवाज फाउंडेशन’ की ओर से एक डॉक्यूमेंट जारी किया, जबकि 2002 में इस बारे में लोगों को पता ही नहीं था कि यह है क्या और क्यों नहीं करनी चाहिए। और आज पूरी दुनिया इस संबंध में जागरूक है। अभी एक महीने पहले भी जब यूएन के प्रमुख मुंबई आए थे, तो हमने उन्हें निवेदन सौंपा कि सेंड माइनिंग के इंटरनेशनल ट्रेड के एजेंडे को शामिल किया जाए ताकि इससे होने वाले पर्यावरण के नुकसान को रोका जा सके। (जैसा उन्होंने मुंबई में विनोद यादव को बताया) सुमेरा अब्दुल अली, पर्यावरणविद, आवाज फाउंडेशन sumariaabdulali@yahoo.com Web Title: Bhaskar editorial by Sumaira Abdulali (News in Hindi from Dainik Bhaskar)Copyright © 2017-18 DB Corp ltd., All Rights Reserved.
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